कुंभ मेला सिर्फ मकर संक्रांति के आसपास क्यों होता है?
कुंभ मेला के आयोजन का समय खगोलीय घटनाओं और हिंदू धर्म के प्राचीन ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होता है। मकर संक्रांति के दौरान सूर्य और अन्य ग्रहों की विशेष स्थिति कुंभ मेले के आयोजन का मुख्य कारण बनती है।
मकर संक्रांति का खगोलीय और धार्मिक महत्व
1. सूर्य का मकर राशि में प्रवेश:
मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि (Capricorn) में प्रवेश करता है। इसे "उत्तरायण" की शुरुआत माना जाता है, जो आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक शुभ होता है। इस समय से दिन लंबे होने लगते हैं और प्रकृति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
2. पवित्र स्नान का समय:
हिंदू धर्म में यह समय आत्मा को शुद्ध करने और मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। मकर संक्रांति के आसपास स्नान करने से मनुष्य के पाप समाप्त होते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है।
3. ग्रहों की विशिष्ट स्थिति:
कुंभ मेला के आयोजन का समय तभी चुना जाता है, जब ग्रहों की स्थिति विशेष रूप से शुभ होती है। उदाहरण के लिए:
- जब बृहस्पति (गुरु) कुंभ राशि में हो।
- जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं।
यह खगोलीय स्थिति वातावरण में दिव्य ऊर्जा का निर्माण करती है, जो आत्मा को शुद्ध करने में सहायक मानी जाती है।
कुंभ मेला के आयोजन में मकर संक्रांति का संबंध
मकर संक्रांति कुंभ मेले की शुरुआत का प्रतीक है। हालांकि मेला कई दिनों तक चलता है, लेकिन मकर संक्रांति के दिन का महत्व इसलिए अधिक होता है क्योंकि इस दिन ग्रहों की स्थिति सबसे शुभ मानी जाती है।
धार्मिक कथा
समुद्र मंथन की पौराणिक कथा में कहा गया है कि अमृत कलश की बूंदें उन स्थानों पर गिरी थीं, जहां कुंभ मेला आयोजित होता है। इस समय ग्रहों की विशेष स्थिति का उल्लेख भी किया गया है, जो अमृत की ऊर्जा को जागृत करती है। मकर संक्रांति के आसपास स्नान करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ मिलता है और वह मोक्ष के करीब पहुंचता है।